"". धर्म. आत्मिक ओंधोकर का एक युग (धर्म अर्थ )religion meaning

धर्म. आत्मिक ओंधोकर का एक युग (धर्म अर्थ )religion meaning

धर्म. आत्मिक  ओंधोकर का एक युग   (धर्म अर्थ)





 थिस्सलुनिकों के नाम की अपनी पत्री में कीट ने एक बड़े होते हैं  आत्मिक के बारे में लिखा गया है जो पिपीय सत्ता के सेट में स्थापित है  होगा।  वह पूरी तरह से उस दिन तक आयेगा, “जब तक।  रमा के पति की पत्नी ने पति को पति के रूप में नियुक्त किया।  जो परमेश्वर के परमेश्वर के वचन में है, वह परमेश्वर के परमेश्वर के वचन में है।  भविष्य में यह सचेत रहें भाईयों को, “अधर्म का भेद  अब भी काम शुरू हो चुका है  यह देखने वाला था कि कलीसिलिया में गलत तरीके से अपडेट किया गया था जब पिपीय  शक्ति का विकास होगा।  थोड़ा  आगे बढ़ना शुरू हुआ और जब भी कुछ हुआ तो यह हुआ और  संचार से लोगों के दिमाग को कंट्रोल करने के लिए.  यह अधर्म का अपने धोखेबाज और निंदा के काम को आगे बढ़ाया।  बड़ी सूक्ष्मता  और गुप्त रूप से पूजकों के दस्तूरों और नियमों को मिसी कलीसिया  में  प्रवेश।  कुछ समय के लिए कलीसिया का पूरबजकों  भयानक सत का सामना करना पड़ रहा है नहीं किया गया है और निर्धारित किया है।  जैसे कि सत तार का पता  और मसी धर्म के दरबारों और राजपत्र में स्वीकार किया गया;  कलीस्त की बैटरी की शुद्धता और स एक को  असाधारण प्रदर्शन करनेवाला और हकीमों के आदंबर या ठाटबाट को अपना  लिया, और परमेश्वर के आज्ञाओं और विधियों के स्थान में मनुष्यों द्वारा  पापों, शिक्षाओं और डसुरों को कलीसिया में स्थान दिया गया।  सक्सेस  जब तक के लिए रोम के महाराजा कन्टाइन ने फोन नंबर दर्ज किया था  इस धर्म को सुरक्षित रखने के लिए यह सुविधाजनक होगा. था।  अपनी धार्मिकता की चादरें ओढ़े कलीसिया में प्रवेश करें।  अब. प्रष्टता शीघ्रता  एक ही समय में पूजक। या विचार को रोमन कैथलिक चर्च ने अपनाया और इसे लागू किया। सैकड़ों वर्षों तक बाइबल का वितरण करना बन्द कर दिया गया। लोगों को बाइबल पढ़ने से मना कर दिया गया। वे अपने घरों में भी इसे नहीं रख सकते थे, और अपने छल और आकांक्षा को कायम रखने के लिए विवेकहीन पुरोहितों और चर्च के अधिकारियों ने ,  बाइबल की शिक्षाओं का गलत व्याख्या किया। 


इस us  पदाधिकारी और चर्च और राज्य के उपर worship अधिकार रखने वाले व्यक्ति के रुप में पद स्थापित किया गया। अब जब गलतियों को खोज निकालने वाले बाइबल को दूर हटा दिया गया है, शैतान अपनी ईच्छा अनुसार काम करता है । भविष्यवाणी की बातों में यह लिखा हुआ है कि पोपीय शक्ति “समय और व्यवस्था को बदल डालने की कोशिश करेगा।” (दानिएल ७२५) इस काम को करने में देरी नहीं हुई। मूर्तिपूजक लोगों को विश्वास में लाने के लिए रोमन मंडली में प्रतिमा या मूर्ति रखने की व्यवस्था की गई और इस प्रकार से सिर्फ नाम मात्र के लिए लोग मसीही धर्म को स्वीकार करने लगे और धीरे-धीरे प्रतिमाओं और मुतक शरीर एवं उनके शरीर के बचे शेष भागों के प्रति मसीही कलीसिया के आराधना में सम्मान एवं भक्ति दिखाया जाने लगा। अन्त में एक महांसभा में मूर्तिपूजा की व्यवस्था को स्थापित किया गया। इस दूषित काम को पूरा करने के लिए, रोमी मंडली ने परमेश्वर की व्यवस्था, दस आज्ञा से दूसरी आज्ञा को निकाल दिया जहां पर मूर्ति या प्रतिमा पूजा करने की मनाही है और दसवीं आज्ञाा को दो भागों में बांट दिया ताकि दस की संख्या बनी रहे।




मूर्तिपूजकों को और अधिक रियायात (छूट) देने की आत्मा ने स्वर्गीय अधिकार को अपमानित करने के लिए और आगे भी रास्ता खोल दिया। शैतान ने चौथी आज्ञा में भी छेड़-छाड़ किया, और प्राचीन काल से चला आ रहा सब्बत (विश्राम दिन) को भी एक किनारे करने का प्रयास किया, जिस दिन को परमेश्वर ने आशीश दिया था और पवित्र किया था। इस सब्बत दिन के बदले में वह मूर्तिपूजकों के त्योहार के दिन रविवार को स्थापित किया जो सूर्य देवता के लिए पवित्र या पूज्य दिन था। आरम्भ में इस परिवर्तन पर खुले रूप से दबाव नहीं दिया जाता था। प्रथम शताब्दी में सभी तरह के मसीही लोग सच्चे सब्बत दिन (सातवें दिन) को ही मानते थे। वे परमेश्वर को आत्म-सत्कार देने में बड़े
जोशीले थे, और ऐसा विश्वास करते थे कि उसकी व्यवस्था अटल है, अपरिवर्तनशील है। वे बड़े भक्ति के साथ सावधानी पूर्वक इन आज्ञाओं के पवित्रता को सुरक्षित रखे। परन्तु बड़ी सूक्ष्मता और चतुराई से शैतान ने अपने प्रतिनिधियों द्वारा अपने उद्धेश्य की पूर्ति के लिए काम किया। लोगों के ध्यान को रविवार के दिन की ओर खींचने के लिए शैतान ने यीशु खीस्त के पुनरूत्थान (जी उठने) के दिन के सम्मान में त्योहार मानने का एक परम्परा की स्थापना करवाया। इस पुनरूत्थान के दिन रविवार में धार्मिक सभाओं का आयोजन आरम्भ हुआ लेकिन इस दिन को लोग एक मनोरजन के दिन के ही रूप में मानते थे, परन्तु सब्बत (विश्राम दिन) को वे अब भी पवित्र मानते थे। जिस काम को पूरा करने के लिए शैतान ने अपना रूप रेखा बनाया था उसके रास्तों को तैयार करने के लिए उसने यहुदियों को भी यीशु मसीही के प्रथम आगमन के पहले ऐसा अगुवाई किया था जिसके द्वारा वे विश्राम दिन (सब्बत) को तरह-तरह के कठिन नियम बना कर एक बोझ बना दिया था। इस लिए इस दिन को मानना कठिन जान पड़ता था। अब शैतान झूठी ज्योति के द्वारा लाभ उठाते हुए लोगों को यह कल्पना करने के लिए अगुवाई किया कि यह यहुदियों का विश्राम दिन है। जब कि , मसीही लोग रविवार के दिन को एक आनन्द का या एक त्योहार का दिन के रूप में मानते रहे। शैतान ने लोगों को यहूदी धर्म के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न करवाया और सब्बत के दिन को एक उपवास का दिन, एक शोक और अन्धकार के दिन के रूप में उनके सामने प्रस्तुत किया। चौथी शताब्दी के प्रारम्भ में रोम का महाराजा कन्सीटेन्टाइन ने एक अध्यादेश जारी किया और समस्त रोमी साम्राज्य में रविवार के दिन को जनता के लिए सार्वजनिक तौर से एक त्यौहार के रूप में घोषणा किया। यह सूर्य देवता का दिन महाराजा के मूर्तिपूजक प्रजाओं द्वारा पवित्र दिन माना जाता था और अब इस सूर्य के दिन को मसीही लोग भी समान देने लगे थे। रोमी सम्राट की यह चालाकी की नीति थी जिसके द्वारा वह मूर्तिजकों और मसीहियों के बीच जो मतभेद था उसे हटा कर उन्हें एक साथ जोड़ना चाहता था। इस काम को करने के लिए कलीसिया के बिशपों ने राजा से निवेदन किया क्योंकि वे शक्ति प्राप्त करने के लिए लालासित थे। वे यह सोचने लगे थे कि यदि इसाइयों और मूर्तिपूजा कों दोनों के द्वारा एक ही दिन अर्थात् रविवार को उपासना 



  promoted the nominal acceptance of Chebandyby 



आजगा तो मूर्तिपूजक रोमी लोग कम से कम नाम मात्र के लिए भी मसीही धर्म को अपना सकते हैं और इस तरह से मंडली की सामर्थ और महिमा में वृद्धि होगी। जोभी धीरे-धीरे मसीही लोग रविवार के दिन को कुछ हद तक पवित्र मानने के लिए अगुवाई किए जा रहे थे, तो भी वे लोग अब तक चौथी आज्ञा के अनुसार सातवें दिन सब्बत को ही प्रभु के दिन के रूप में पवित्र मानते थे।




प्रधान धोखेबाज ने अब तक अपना काम पूरा नही किया था। वह सारे इसाइयों को अपने झण्डे तले एक साथ ले आने के लिए ठान लिया था। अपने प्रतिनिधि, अभिमानी पोप, जो अपने को खीस्त यीशु का उत्तराधिकारी मानता था उसी के द्वारा वह अपने सामर्थ के काम को कराना चाहता था। आधे मन परिवर्तित और संसारिक लालसा रखने वाले पादरियो, और जगत से प्रेम करने वाले मंडली के सदस्यों के द्वारा ही उसने लक्ष्य को पूरा किया। उस समय बड़ी-बड़ी सभाओं की आयोजन समय समय पर किया जाता था जिसमें सारे जगत के मंडलियों से उच्च पद धारणा करने वाले पादरियों को आमंत्रित किया जाता था। प्राय हर एक सभा में, सब्बत जिसे परमेश्वर ने स्थापित किया उसके महत्व को थोड़ा-थोड़ा कम किया जाता था, परन्तु रविवार के महत्व को थोड़ा-थोड़ा उपर उराया जाता था। इस प्रकार से यह मूर्तिपूजक त्योहार का दिन रविवार, अन्त में परमेश्वर के पवित्र दिन के रुप में माना जाने लगा, जब कि बाइबल के सब्बत (विश्राम दिन) को यहुदियो का सब्बत कह इस से मानना शापित घोषित कर दिया गया। 




महान विधर्मी ने अपने आप को बड़ा
बनाने में सफल हुआ, “जो परमेश्वर या पूज्य
कहलाता है उस से अपने आप को बड़ा ठहराता
है, यहां तक कि परमेश्वर के मंदिर में बैठकर
अपने आप को परमेश्वर प्रगट करता है। (२
थिस्सलुनीकियों २:४) उसने परमेश्वर की
व्यवस्था से सिर्फ एक ही आज्ञा को बदल डालने
का धृष्टता किया क्योंकि इसी आज्ञा में निश्चित
रुप से सारे मानव जाती का सच्चे ओर जीवते
परमेश्वर के बारे दर्शाया गया। इसी चौथी आज्ञा
 में, परमेश्वर को स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता
 के रुप में प्रगट किया गया है, और इसी के द्वारा
सारे झूठी देवी-देवताओं से परमेश्वर की अलग
पहचान होती है। यह सृष्टि के काम का एक स्मारक है और यह कि सातवें दिन को मानव जाती के लिए विश्राम दिन के रुप में पवित्र ठहराया गया। इसे इस लिए बनाया गया था कि इसके द्वारा मनुष्य के मन में हमेसा स्मरण रहे कि, वही जीवता परमेश्वर है, और उसी को पवित्र माना जाए, और उसी की उपासना भी किया जाए क्योंकि वही जीवन का स्रोत है। शैतान मनुष्यों को परमेश्वर की भक्ति करने और उसकी आज्ञाओं को पालन करने से दूर हटाना चाहता है ; इसी लिए वह खास कर के उस आज्ञा के विरूध काम करता है, जो आज्ञा परमेश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में दिखलाता है। आज प्रोटेस्टेन्ट मंडली के लोग यह सिखलाते हैं कि रविवार के दिन यीशु खीस्त का जी उठना ही इस दिन को खीश्चियन सब्बत का रूप प्रदान करना है परन्तु इस बात का प्रमाण पवित्र शास्त्र बाइबल से नहीं दिया जा सकता है। यीशु खीस्त के जी उठने के दिन रविवार या उसके शिष्यों के दिन को सबबत के दिन के रूप में प्रतिष्ठा धर्म शास्त्र बाइबल में कहीं नहीं दिया गया है। रविवार को खीश्चियन सब्बत के रूप में मानने की उत्पति या शुरुवात, “अधर्म के भेद' (थिस्सलुनिकियों २:७) में है, जो पौलुस के दिनों में ही अपना काम आरम्भ कर चुका था। प्रभु परमेश्वर ने कब और कहां इस पोप रूपी बालक को गोद लिया या अपना उतराधिकारी नियुक्त किया ? इसका उललेख बाइबल में कहीं नहीं है। उस परिवर्तन के विषय में कौन सा उचित कारण दिया जा सकता है जिसके बारे धर्म शास्त्र बाइबल किसी तरह का अनुमोदन नहीं करता है ?



दशवीं सदी में व्यवस्था पूरी तरह से रूप से स्थापित होने के लिए।  पिप की शक्ति का सम्मान नगर प्रतिष्ठान गया, और रोप के सर्वश्रेष्ठ मसी कलीसिओं के प्रधान मंत्री पद में खुला हुआ।  रेपपूजक रोप ने अपना स्थान पिप को ऑफ़र किया गया।  अजीज ने जानवरों को " समर्थ, और अपना सिंहासन, अधिकारिक  (प्रकाशित वाक्य १३:२) और अब १२६० (बारह सौ साठ) साल के पिप रोम की तीर्थयात्राओं के लिए मानचित्र पढ़ें।  भविष्य में रिश्ते में पोप उनके बिचवई के रूप में, परन्‍तु उस पर भरोसा रखने के लि‍ए , तपस्या करता है, ऋग्वेद की पूजा, नबूवत का निर्माण।  (संतुलन ७:२५; नियत राशि का भुगतान अच्छा था वाक्य १३:५-७) इसा के उपर प्रेसी वे किसी एक को चुनें, वे पिप की नियमावली - विधियों या अपने जीवन को हिरासत में रखें, तहखानों में दर्ज करें नष्ट य़ाजे के लिए मृत्यु का सामना करना पड़ रहा है रंध्र हो या प्रधानों के कुला से काटे-जाने को बाहर।  इस समय मसल्स की बातें — “तुम्हारी माता-पिता और भाई और कुदुम्ब और मित्र भी पासवा ;  यहाँ तक कि तुम से कितने को मरवा  दौलेंगे।  और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। "  (लुका २१:१६-१७) खीस्त के विश्वास पर बड़ी सूक्ष्मता जैसे पहले कभी भी।  विशाल युद्ध क्षेत्र बन गया था।
 खिस्त की मूल मंडली को कई वर्षों तक विस्तृत और अन्धकार के विशेषज्ञ में शरणागति।  इस तरह से असामान्य : “ और वह जंगली को उस स्थान पर रहने के बाद, कि वहां एक हजार दो सौ सात बजे तक पोल (प्रकाश वाक्य १२:६) अन्धकार युग्मक समय-समय पर किया जाता है।  जैसे कि इस मंडली की स्थिति बढ़ती है वे से संबंध स्थापित करना और अधिक पसंद करना.  वास्तविक नीव जो  

खीस्त है, उस पर से लोगों का विश्वास हट कर,
रोम के पोप में चला आया। आपने पापों के क्षमा
और सनातन उद्धार के लिए परमेश्वर के पुत्र
यीशु मसीह पर भरोसा करने के बदले लोगों पर
पोप पर और पुरोहितों और पादरियों पर भरोया
करने लगे जिन्हें पोप ने पाप क्षमा प्रदान करने
का अधिकार दिया था। लोगों को यह सिखलाया
जाता था कि पोप ही उनका संसारिक मध्यस्थ है
और यह कि पोप के बगैर कोई भी व्यक्ति
VII pro-claimed the perfection of the
Roman Church, declaring that the 
In the eleventh century, Pope Gregory 
Church had never erred, nor would it
ever err, according to the Scriptures.





 परमेश्वर के पास नहीं आ सकता है, और इसके अतिरिक्त आगे यह भी सिखाया गया कि उनके लिए इस जगत में पोप ही ईश्वर के स्थान में खड़ा है, इस लिए शंका किए बिना ही पोप की आज्ञा को मानना है। पोप की आज्ञाओं, नियमों या रीति-विधियों से थोड़ा भी इधर उधर होना कठिन दण्ड का कारण हो सकता था और लोगों को शारीरिक और मानसिक यातनाएँ भूगतनी पड़ सकती थी। इस तरह से लोगों के मन को परमेश्वर से हटा कर भ्रम में डालने वाले, गलत काम करने वाले क्रूर मनुष्य, एवं अन्धकार के राजकुमार की और मोड़ा गया जो अपनी शक्ति को उनके द्वारा काम में लाना है। पवित्र पहरावे में पाप भेष बदल कर छिप गया। जब कभी भी पवित्र शास्त्र बाइबल को दबाया जाता है, और मनुष्य अपने आप को महान समझ लेता है, तब हम सिर्फ धार्मिक पाखण्ड छल-कपट और पाप एवं बुराई के मिलावट को देख सकते है। मनुष्यों की व्यवस्थाओं (नियमों) और परम्पराओं को परमेश्वर की व्यवस्थाओं से उपर उठाने का अर्थ होता है भ्रष्टाचारिता को लाना या प्रगट करना। वे दिन खीस्त की कलीसिया के लिए संकट के दिन थे। सच्ची बात तो यह थी कि उन दिनों में विश्वास के झण्डे को उठाने वाले थोड़े रह गए थे। सच्चाई जो भी बिना गवाही की नहीं छोड़ी गई थी, फिर भी कभी कभी ऐसा प्रतीत होता था कि गलतियाँ और अन्धविश्वास ही सम्पूर्ण रूप से छा जायगी, और सच्चा धर्म संसार से लुप्त हो जायगा। सुसमाचार की बातें भुला दी गई, परन्तु धर्म के तौर तरीकों में अनेक वृद्धि हुई और लोगों पर रीति-विधियों के पालन करने का बोझ को लाद दिया गया।






लोगों को सिखलाया जाता था कि वे पोप सिर्फ अपने मध्यस्थ के रूप में
ही न देखें, परन्तु यह विश्वास करें कि वह उनके पापों को भी क्षमा कर अतिरिक्त आगे यह भी सिखाया गया कि उनके लिए इस जगत में पोप ही ईश्वर के स्थान में
खड़ा है, इस लिए शंका किए बिना ही पोप की
आज्ञा को मानना है। पोप की आज्ञाओं, नियमों
या रीति-विधियों से थोड़ा भी इधर उधर होना
कठिन दण्ड का कारण हो सकता था और लोगों
को शारीरिक और मानसिक यातनाएँ भूगतनी
पड़ सकती थी। इस तरह से लोगों के मन को
परमेश्वर से हटा कर भ्रम में डालने वाले, गलत
काम करने वाले क्रूर मनुष्य, एवं अन्धकार के
राजकुमार की ओर मोड़ा गया जो अपनी शक्ति
को उनके द्वारा काम में लाना है। पवित्र पहरावे 
में पाप भेष बदल कर छिप गया। जब कभी भी 
पवित्र शास्त्र बाइबल को दबाया जाता है, समझ लेता है, तब हम सिर्फ धार्मिक पाखण्ड छल-कपट और पाप एवं बुराई के मिलावट को देख सकते है। मनुष्यों की व्यवस्थाओं (नियमों) और परम्पराओं को परमेश्वर की व्यवस्थाओं से उपर उठाने का अर्थ होता है भ्रष्टाचारिता को would enlist in the ponuis warnity punish his enemies.
past, present, and future, and release
incurred, to all who





और मनुष्य अपने आप को महान लाना या प्रगट करना। वे दिन खीस्त की कलीसिया के लिए संकट के दिन थे। सच्ची बात तो यह थी कि उन दिनों में विश्वास के झण्डे को उठाने वाले थोड़े रह गए थे। सच्चाई जो भी बिना गवाही की नहीं छोड़ी गई थी, फिर भी कभी कभी ऐसा प्रतीत होता था कि गलतियाँ और अन्धविश्वास ही सम्पूर्ण रूप से छा जायगी, और सच्चा धर्म संसार से लुप्त हो जायगा। सुसमाचार की बातें भुला दी गई, परन्तु धर्म के तौर तरीकों में अनेक वृद्धि हुई और लोगों पर रीति-विधियों के पालन करने का बोझ को लाद दिया गया। 

लोगों को सिखलाया जाता था कि वे पोप सिर्फ अपने मध्यस्थ के रूप में ही न देखें, परन्तु यह विश्वास करें कि वह उनके पापों को भी क्षमा कर सकता है। परमेश्वर के क्रोध को शान्त करने या उसके अनुग्रह को प्राप्त करने, परमेश्वर एक मनुष्य के समान है, जो छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो उठता  और उसे अपने दानों या प्रायश्चित के कामों के द्वारा प्रसन्न किया जा सकता इस लिए लम्बी धार्मिक तीर्थ यात्राएं, तपस्या के काम, संतों के अवषेसों की मानों उपासना, गिरजा घरों का निर्माण और वेदियों को खड़ा करना और मंडली (चर्च) के लिए भारी रकम देना इस तरह के अनेक काम परमेश्वर को खुश

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